‘Akhanda 2: Thaandavam’ रिव्यू — Balakrishna की मौजूदगी भी नहीं बचा पाती इस हाई-वोल्टेज फिल्म को 🎬🔥

1. परफॉर्मेंस: Balakrishna फिर भी स्क्रीन के मालिक हैं 🙌
Balakrishna की स्क्रीन-प्रेज़ेंस और डिलिवरी वही बड़ी-अदाकारी है जिसे लोग सालों से देखते आए हैं — जब वह बोलते हैं तो पल भर के लिए थिएटर में एक बिजली-सा माहौल बन जाता है। उनके कुछ सीन ऐसे हैं जो दर्शकों को उकसाकर खड़े कर देते हैं। पर यह भी सच है कि सिर्फ स्टार पावर से फिल्म का ढांचा मजबूत नहीं हो पाता। कई क्रिटिक्स ने भी यही कहा है कि Balayya की मौजूदगी अच्छे पलों को जन्म देती है पर कहानी-विकास को मंज़ूब नहीं कर पाती।
2. स्क्रीनप्ले और कहानी: शोर पर कहानी भारी 😕
फिल्म का सबसे बड़ा मुद्दा इसकी लेखन-कमजोरी है। बड़े-बड़े एक्शन-सेट-पीस और देवात्मक इमेजरी के पीछे असल कथानक का कोई ठोस आधार नहीं मिलता। किरदारों की खुराक अक्सर डायलॉग और पोज़िंग के लिए बनाई गई लगती है, न कि संवेदनशीलता या तार्किक निर्णयों के लिए। यह वजह है कि क्लाइमेक्स तक जाते-जाते दर्शक थकावट महसूस कर लेते हैं। कई रिव्यूज ने फिल्म को “न्यूनतम कहानी, अधिकतम शोर” बताया।
3. डायरेक्शन और टोन — Boyapati का पैटर्न परफॉर्म करता है पर किस्मत साथ नहीं देती 🎯
Boyapati Sreenu की दिशा में वही पारंपरिक ‘मास’ एलिमेंट्स दिखते हैं — विशाल कैमरा मूव्स, ग्रैंड फ्रेमिंग और एरोज़िक डायलॉग्स। ये सब तब चमकते हैं जब फिल्म छोटे-छोटे भावनात्मक पलों को पकड़ लेती है, लेकिन यहाँ बार-बार तड़-तड़ाहट से टकराकर वो पलों भी दब जाते हैं। कुछ सीन विज़ुअली प्रभावी हैं, पर टोन ज्यादातर पलकझपक में बदल जाता है और दर्शक भावनात्मक निवेश नहीं कर पाते।
4. म्यूजिक और बैक-ग्राउंड स्कोर — मददगार पर कभी ओवरवेल्मिंग 🎵
S Thaman का स्कोर कई बार फिल्म को ऊर्जा देता है और कुछ एक्शन व इंस्ट्रुमेंटल सेक्वेंस में जान डालता है। पर इसी स्कोर की ज़रूरत से अधिकता कुछ दृश्यों में भावनात्मक नैरेटिव को दबा देती है — यानी साउंडट्रैक खुद कहानी का सहारा बनने के बजाय शोर का हिस्सा बन जाता है।
5. सपोर्टिंग कास्ट और विलेन — अधूरा उपयोग 😐
समर्थन किरदार और विरोधी पात्र अक्सर फ्लैट लिखे गए हैं — उनके निर्णय और बैकस्टोरी ऐसे लगते हैं कि केवल हीरो की चमक बढ़ाने के लिए रखे गए हैं। इससे न तो विलेन दर्शक के लिए खतरनाक बन पाता है और न ही सपोर्टिंग रोल्स कोई स्थायी प्रभाव छोड़ पाते हैं।
6. ऑडियंस रिएक्शन और बॉक्स-ऑफिस बातें 💬💸
प्रारम्भिक दर्शक-रिव्यूज में तेज़ी से दोनों तरह की प्रतिक्रियाएँ दिखीं — कुछ फैंस फिल्म को ‘पैसा वसूल मास-एंटरटेनर’ कह रहे हैं जबकि दूसरे क्रिटिक्स तथा कई नेटिज़न्स ने कहानी और लॉजिक की कमी की आलोचना की है। इसी बीच स्थानीय खबरों में फिल्म से जुड़े टिकट-प्राइसिंग और रिलीज सम्बन्धी चर्चाएँ भी रही — यानी बक्से में कमाई का रुझान अलग और आलोचना अलग दिख रही है।
7. किसको देखें और किसे बचना चाहिए — एक प्रैक्टिकल गाइड 🧭
ज़रूर देखें अगर — आप Balakrishna के फैन हैं, बड़े-स्क्रीन एक्शन और शक्तिशाली डायलोग्स का आनंद लेते हैं, और ‘इंडस्ट्री-स्टाइल’ मसाले वाली फिल्में पसंद करते हैं।
बचना चाहिए अगर — आप यथार्थपरक कहानी, मजबूत किरदार विकास और भावनात्मक गहराई की तलाश में हैं।
8. क्या फिल्म की कमजोरियों के बावजूद कुछ सकारात्मक बातें हैं? ✅
हाँ — प्रमुख रूप से Balakrishna की की-पर्सनालिटी, कुछ विज़ुअल-सीक्वेंसेज़ और थमन का स्कोर। ये तत्व कुछ दृश्यों को कामयाब बनाते हैं और अगर आप ‘मास’ के फॉर्मूले से जुदा उम्मीद नहीं रखते तो आपको मनोरंजन के पल मिल सकते हैं।
निष्कर्ष — शोर में खोई कहानी, पर फैनबेस के लिए थोड़ी खुशी 🎭
समग्र रूप से Akhanda 2: Thaandavam उन फिल्मों में है जो बड़े एंट्री-लैवल के पैमाने और स्टार-ड्राइव से ध्यान खींचती हैं, पर भीतर जाकर खालीपन महसूस कराती हैं। Balakrishna के ‘राउंड-कमैन’ प्रदर्शन के बिना यह फिल्म और भी अधिक अस्पष्ट लगती। यदि आपकी प्राथमिकता ‘कथात्मक संतुष्टि’ है तो यह फिल्म निराश कर सकती है; पर अगर आप थिएटर में जोरदार एक्शन-डोज़ और डींगों के साथ उपस्थित रहना चाहते हैं तो यह आपके लिए काम कर सकती है।