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👉 “मऊ में दहेज की हैवानियत! 🚨 बाइक न मिलने पर 6.5 महीने बाद विवाहिता को घर से निकाला, 5 पर केस दर्ज”

मऊ में दहेज उत्पीड़न: बाइक के लिए विवाहिता को घर से निकाला, 5 नामजद 🚔

उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे इलाके में दहेज प्रथा पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। शादी के साढ़े छह माह बाद ही एक विवाहिता को उसके ही ससुरालवालों ने घर से बाहर निकाल दिया। वजह थी — बाइक और ₹2 लाख रुपये की मांग। 😔यह मामला सरायलखंसी थाना क्षेत्र के बदुआगोदाम गांव का है। पीड़िता मधुलिका ने पुलिस को दी गई शिकायत में अपने पति और चार अन्य पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पुलिस ने दहेज उत्पीड़न की धाराओं में केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। 💔

शादी और घटना का पूरा सिलसिला 📅

मधुलिका की शादी 7 फरवरी 2025 को बड़े धूमधाम से हुई थी। शादी में लड़की वालों ने अपनी क्षमता के अनुसार नकद राशि, सोने की चैन, अंगूठी और घरेलू सामान दिया। लेकिन पीड़िता के अनुसार, ससुरालवालों की मांगें यहीं खत्म नहीं हुईं। शादी के कुछ ही महीनों बाद पति और ससुराल पक्ष ने एक और बाइक और ₹2 लाख नकद की मांग करनी शुरू कर दी।

22 अगस्त 2025 को विवाद इतना बढ़ गया कि कथित रूप से ससुरालवालों ने विवाहिता से मारपीट की और उसे घर से निकाल दिया। महिला ने थाने पहुंचकर पूरे मामले की जानकारी दी। 🚨

आरोपियों की सूची 📝

  • पति: अमित यादव
  • ससुर: रामप्रकाश यादव
  • सास: मैना देवी
  • देवर: अंकित यादव
  • ननद: खुशबू यादव

दहेज प्रथा और कानून 📜

भारत में दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आते हैं। दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत दहेज की मांग, दहेज के लिए उत्पीड़न या प्रताड़ना अपराध माना जाता है और इसके लिए सात साल तक की सजा हो सकती है।

मधुलिका के मामले ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि समाज में आज भी दहेज जैसी कुप्रथा गहराई से जमी हुई है। ग्रामीण इलाकों में तो यह समस्या और भी ज्यादा देखने को मिलती है, जहां बाइक, सोना, नकद और जमीन तक की मांगें आम हो गई हैं। 🚲💰

मऊ में बढ़ते ऐसे मामले ⚖️

मऊ जिले में दहेज उत्पीड़न के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि हर साल ऐसे दर्जनों केस सामने आते हैं, जिनमें या तो महिला को प्रताड़ित किया जाता है, या उसे आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया जाता है।

पिछले कुछ महीनों में ही कई ऐसे मामले सुर्खियों में आए हैं। कहीं महिला को जलाने का प्रयास हुआ, तो कहीं उसे घर से निकाल दिया गया। यह घटनाएं दिखाती हैं कि कानूनी प्रावधानों के बावजूद समाज में दहेज की कुप्रथा खत्म नहीं हो पा रही है। 🔥

समाज पर असर और संदेश 📢

ऐसे मामलों का असर केवल पीड़ित महिला तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे परिवार और समाज पर पड़ता है। एक बेटी जब विवाह के बाद अपने ससुराल में सुरक्षित नहीं होती, तो यह हर माता-पिता के लिए चिंता का विषय बन जाता है।

जरूरत इस बात की है कि समाज एकजुट होकर दहेज की मांग करने वालों का बहिष्कार करे और बेटियों को न्याय दिलाने में सहयोग करे। दहेज मुक्त शादी को प्रोत्साहित करना होगा ताकि ऐसी घटनाओं पर रोक लग सके। ✊

पुलिस की भूमिका और आगे की कार्रवाई 🚓

मऊ पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। अब आगे की जांच में यह देखा जाएगा कि पीड़िता के आरोप कितने पुख्ता हैं। अगर आरोप साबित होते हैं, तो आरोपियों को जेल की हवा खानी पड़ेगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज कराना ही पहला और सबसे बड़ा कदम है। कई बार महिलाएं समाज और परिवार के डर से आवाज नहीं उठातीं, जिसके चलते ससुरालवालों का हौसला और बढ़ जाता है। लेकिन मधुलिका का केस दिखाता है कि अगर साहस किया जाए तो न्याय की राह जरूर खुलती है। 🌟

दहेज प्रथा खत्म करने की दिशा में कदम 🕊️

1. शादी को सादगी से करने की परंपरा को बढ़ावा देना चाहिए।
2. बेटियों और उनके परिवारों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना होगा।
3. दहेज मांगने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए।
4. कानून का सख्ती से पालन और दोषियों को कठोर सजा दी जाए।

अगर समाज इस दिशा में मिलकर कदम उठाता है, तो दहेज जैसी बुराई को खत्म किया जा सकता है। 🌍

ग्रामीण इलाकों में दहेज की मानसिकता 🚜

ग्रामीण क्षेत्रों में दहेज को अब भी ‘प्रतिष्ठा’ से जोड़ा जाता है। कई बार देखा गया है कि शादी तभी तय होती है जब लड़के वाले बाइक, कार या नकद की शर्त रखते हैं। अगर लड़की का परिवार इन शर्तों को पूरा नहीं करता, तो रिश्ता टूट जाता है। यही मानसिकता समाज को पीछे धकेल रही है।

बदुआगोदाम जैसे गांवों में आज भी लोग यह मानते हैं कि बिना दहेज शादी करना ‘नुकसान’ है। जबकि सच्चाई यह है कि दहेज न केवल अपराध है, बल्कि रिश्तों को जहर देने वाली बीमारी भी है। 🌿

महिलाओं के अधिकार और जागरूकता 👩‍⚖️

आज की महिलाएं पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर हो रही हैं। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण कई बार वे अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पातीं। दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों में महिलाएं अक्सर चुप रहती हैं, जिससे अपराधी बच निकलते हैं।

जरूरी है कि हर महिला को यह पता हो कि दहेज मांगने पर तुरंत शिकायत की जा सकती है। हेल्पलाइन नंबर 181 और महिला थाने जैसी सुविधाएं उनके लिए ही बनाई गई हैं। 📞

परिवारों की भूमिका ❤️

दहेज की समस्या तभी खत्म होगी जब परिवार अपनी बेटियों की शादी बिना दिखावे और लेन-देन के करेंगे। माता-पिता को यह सोचना होगा कि बेटी की खुशी पैसे और दहेज से नहीं, बल्कि अच्छे रिश्तों से होती है।

अगर हर परिवार दहेज से इंकार कर दे, तो धीरे-धीरे यह प्रथा समाज से खत्म हो जाएगी। 🌸

मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका 📺

आजकल ऐसे मामलों को मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर काफी जगह मिल रही है। मऊ का यह केस भी चर्चा में आया और देखते ही देखते खबर वायरल हो गई। फेसबुक, एक्स (ट्विटर) और व्हाट्सएप पर लोग लगातार अपनी राय दे रहे हैं। कई लोग दहेज प्रथा को लेकर गुस्सा जाहिर कर रहे हैं, तो कुछ लोग पीड़िता के समर्थन में खड़े हो गए हैं।

सोशल मीडिया की ताकत यह है कि इससे घटनाएं दब नहीं पातीं। पहले कई केस थाने की फाइलों में दब जाते थे, लेकिन अब जनता की नजर ऐसे मामलों पर बनी रहती है। इससे प्रशासन पर भी कार्रवाई का दबाव बढ़ता है। 👁️

युवाओं की सोच और बदलाव 🌱

युवाओं की मानसिकता बदलना इस समस्या का सबसे बड़ा हल है। नई पीढ़ी को समझना होगा कि शादी प्रेम, विश्वास और समानता पर टिकी होती है, न कि पैसों और वस्तुओं पर। अगर लड़के खुद आगे बढ़कर दहेज लेने से इंकार करें, तो आधी समस्या तुरंत खत्म हो जाएगी।

देशभर में कई ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां युवाओं ने बिना दहेज शादी करके समाज में मिसाल पेश की है। ऐसे लोगों की कहानियों को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करना चाहिए। 🌟

महिला संगठनों और NGOs का प्रयास 🤝

मऊ जैसे जिलों में महिला संगठन और एनजीओ लगातार दहेज के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। वे पीड़ित महिलाओं को कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं।

अगर प्रशासन इन संगठनों को सहयोग करे और ग्रामीण स्तर तक दहेज विरोधी कैंप लगाए, तो लोगों की सोच धीरे-धीरे बदली जा सकती है। 🌍

निष्कर्ष 🙏

मऊ का यह मामला सिर्फ एक विवाहिता की त्रासदी नहीं है, बल्कि समाज की जड़ जमाई कुप्रथा का प्रतिबिंब है। दहेज प्रथा की जड़ें जितनी गहरी हैं, उतना ही जरूरी है कि हम सब मिलकर इसके खिलाफ खड़े हों।

कानून, समाज, परिवार और युवाओं की सोच मिलकर ही बदलाव ला सकती है। अब वक्त आ गया है कि हर कोई यह संकल्प ले — “दहेज नहीं, बराबरी चाहिए”। ✊

 

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